बुधवार, 24 मार्च 2021

  गीत

                  कब तक आशा दीप जलाऊँ ,                                 

                  इस अल्लढ़ मन को समझाऊँ |

             जनम जनम से मन की राधा ,

             खोज रही अपना मन भावन |

             तृष्णा नहीं मिटी दर्शन की ,

             रीत गया यह सारा जीवन |

                 अब कब तक उस श्याम बरन को ,

                 नित श्वासों का अर्घ्य चढाऊं |

             सोचा था मन के उपवन में ,

             रंग बिरंगे फूल खिलेंगे |

             जब जब चाँद हंसेगा नभ में ,

             सारे सुख भू पर उतरेंगे | 

                 अब कब तक कल्पना कुन्ज में ,

                 गाऊँ चातक सा अकुलाऊँ |

             जाने कब से पागल सुधियाँ ,

             बैठीं पथ में पलक बिछाये  |

             कुछ अतृप्ति कुछ पीर संजोकर ,

             स्वागत में दृग दीप जलाये |

             अब कब तक उस भोर किरन की ,

                 सतत प्रतीक्षा करता जाऊं |

   

        स्वरचित – आलोक सिन्हा           

 

 

 

 

 

 

 

 

20 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर रचना, सादर नमन बधाई हो

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  2. ज्योति जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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  3. कब तक आशा –दीप जलाऊँ ,
    इस अल्लढ़ मन को समझाऊँ |
    खुद से प्रश्न करता मन -- अधूरी कामनाएं और चातक मन की कोई प्रगाढ़ कल्पना -- आपकी भावपूर्ण रचनाएँ मन को काव्य का अद्भुत आनंद प्रदान करती हैं आलोक जी | सादर प्रणाम और शुभकामनाएं|

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  4. बहुत बहुत धन्यवाद आभार सार्थक अच्छी टिप्पणी के लिए

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  5. मन में उमड़ते भावों को बहुत सुंदरता से
    गीत में पिरोया है
    बहुत खूब
    बधाई

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  6. बहुत बहुत धन्यवाद आभार सुखद टिप्पणी के लिए |

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  7. बहुत बहुत धन्यवाद आभार ज्योति जी

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  8. आलोक जी सुंदर और भावपूर्ण रचना के लिए आपको बधाई। बहुत बढ़िया सृजन आलोक जी।

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  9. बहुत बहुत धन्यवाद आभार वीरेन्द्र जी सुन्दर टिप्पणी के लिए

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  10. आन्तरिक ऊहापोह का सुन्दर विश्लेषण।
    अच्छी रचना।

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  11. बहुत बहुत धन्यवाद आभार भाई साहब

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  12. वाह आलोक जी ... ह्रदय के कोमल भावों को छू गई आपकी रचना ...
    मन के भावों को संतुलित करने का प्रयास ... भावभीनी रचना ...

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  13. नासवां जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार सुन्दर टिप्पणी के लिए

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  14. अब कब तक कल्पना कुन्ज में ,
    गाऊँ , चातक सा अकुलाऊँ |
    कब तक आशा –दीप जलाऊँ ,
    इस अल्लढ़ मन को समझाऊँ |
    वाह!!!
    आकुल मन का अपने अराध्य से सटीक प्रश्न
    बहुत ही मनभावन लाजवाब सृजन।

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  15. बहुत अच्छी और गीत के वास्तविक मर्म को इंगित करने वाली टिप्पणी के लिए सुधा जी बहुत बहुत धन्यवाद ह्रदय से आभार |

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  16. संजय जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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