गीत
कब तक कोई आस लगाये ,
अपना आकुल मन बहलाए |
घर सूना है , आंगन सूना ,
जीवन का वृन्दावन सूना |
सुधियों
की राधिका हठीली ,
और कर रही दुःख को दूना |
बिलख रही प्राणों की वंशी ,
बिना तुम्हारे कौन बजाये |
सांसौं की गोपियाँ शिथिल मन ,
भटक रही हैं कानन कानन |
शीश धरे आशा की गगरी ,
नयनों में गंगाजल पावन |
उमर थक गई , पर करील की –
कुंजों में घनश्याम न आये |
देख देख कर बाट चरण की ,
मुरझाईं कलियाँ सब तन की |
व्याकुल नयनों की कालिन्दी ,
बिन छवि देखे श्याम बरन की |
टेर रहा गोकुल का कण कण ,
अपना बोझिल शीश उठाये |
आलोक सिन्हा