गजल
मैं बहारों के घर कल गया ,
आँधियों को पता चल गया ।
ये आख़री रात है कह कर ,
रोज अँधेरा मुझे छल गया ।
खुशी लाएगी कल कुछ सुबह ,
उम्मीद में हर दिन ढल गया ।
खतावार हूँ मुआफ कर दो ,
सच यूं ही मुँह से निकल गया ।
काग बोला है मुंडेरी पर ,
क्या उन्हें मेरा खत मिल गया ?
आलोक बच्चा है सरल सा ,
झूठे वादों से बहल गया ।
अलोक सिन्हा