गाँव का गीत
शासन
नौका खेने वालो ,
राम-राज देने वालो ,
एक बार तुम जी कर देखो , जीवन किसी
किसान का |
कैसे एक दिवस कटता है ,छोटे से इन्सान का |
भरे जेठ की कड़ी दुपहरी ,
खड़े खड़े सिर पर उतरी |
और पूस की रात अंधेरी ,
खेत सींचने में गुजरी |
वर्षा में बाढ़ों ने घेरा , सूखे ने
मारी फसलें ,
ऐसा कोई दिवस नहीं जो पल भर को भी हम हंसलें ,
दुःख सबके हरने वालो ,
जन सेवक बनने वालो ,
एक बार सुख लेकर देखो , तुम तिनकों
की छान का |
छोटी हो या बड़ी हाट में ,
असली चीज नहीं मिलती |
कई कई दिन बिजली गायब ,
चक्की रोज नहीं चलती |
]
कभी खाद
पानी दुर्लभ तो , कभी न मिलतीं
औषधियां , कभी तेल के लिए भटकते ,बिलख बिलख रोतीं खुशियाँ ,
शहरों में रहने वालो ,
हर सुविधा पाने वालो ,
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कभी द्रश्य
आ तुम भी देखो , राशन की
किसी दुकान का |
माटी की कच्ची झोंपड़ियाँ
,
ऊंचे नीचे पथ सारे |
जगह जगह जल कुण्ड पोखरें
,
टेढ़े सकरे गलियारे |
रिश्वत अपनी बैसाखी है , घृणा उपेक्षा
जीवन सार ,
जाति , धर्म की
गहन खाइयाँ , बिखर रहा
युगों का प्यार |
ग्रामोदय करने वालो ,
नीति नित्य रचने वालो ,
क्या ये ही नक्शा खींचा है , तुमने हिदुस्तान
का |