गीत
मुंडेरी मुंडेरी दिए जगमगाये |
कहीं अल्पना हैं , कहीं पुष्प लड़ियाँ ,
नृत्य गान घर घर , भव्य पन्थ गलियाँ |
यही दृश्य होगा उस दिन अवध में ,
जब राम चौदह बरस बाद आये |
मुंडेरी मुंडेरी दिए जगमगाए |
निशा आज जैसे नख-शिख सजी है ,
खुशियों की मन में वंशी बजी है |
हर ओर उत्सव , उमड़ती उमंगें ,
अब ये खुशी काश पल भर न जाये |
मुंडेरी मुंडेरी दिए जगमगाए |
चलो वहाँ देखें क्यों है अँधेरा ,
क्यों सब हैं गुमसुम , दुःख का बसेरा |
यदि कुछ तिमिर हम औरों का बाँटें ,
धरा ये सूनी कहीं रह न पाये |
मुंडेरी मुंडेरी दिए जगमगाए |