यह रचना १९७० के दशक की है | जब
सारे देश में परिवार नियोजन की योजना अपने चरम पर थी |
गीत
सारे जग की खुशी तुम्हारे घर
आकर मुस्कायेगी |
जीवन की बगिया के माली ,
एक गुलाब लगाओ |
महके सारी धरती जिससे ,
ऐसा फूल खिलाओ |
सारे जग की गंध तुम्हारी गली
गली महकाएगी |
तारों से तो रात अंधेरी ,
एक चन्द्रमा लाओ |
कोना कोना सोना कर दे ऐसा सूर्य उगाओ |
नन्हीं किरन तुम्हारा आंगन रोली
से रंग जायेगी |
अनगिनती ग्रंथों से मत ,
जीवन का बोझ बढाओ |
मानस एक एक गीतांजलि ,
रचो , अमर हो जाओ |
सारे जग की कीर्ति तुम्हारे घर
घर गीत सुनाएगी |