गजल
जिन्दगी जब किसी मुश्किल में डगमगाती है ,
कहीं कमी हैं हममें अहसास ये कराती है |
स्वप्न भले टूटे , पर आदर्श न छोड़ो अपने, ,
आत्मा न हो तो देह धूल कण कहलाती है |
शहर डूबा तो बारिश को सब ने दोष दिया ,
जिम्मेदारी तो इन्तजामों पर भी आती है |
खुद पर भरोसा हो तो चाहे जो काम करो ,,
डोरी सहारे की तो अक्सर टूट जाती है |
झूठी तारीफ से बहकना तो मंजूर हमें ,
मार्ग - दर्शन की पर आलोचना न भाती है |
`झूठ` जब बोले , सदा फूल से झरते मुख से ,
सच को `जबान `क्यों ये हुनर नहीं सिखाती है |
आलोक सिन्हा