भाग्य में अपने क्या बस काली रात है ,
नयन ने पाई आंसू की सौगात है |
बस ऊंचे पेड़ों तक आता उजियारा ,
गाँव में अपने उगता अजब प्रभात है |
२
मैंने उगता छिपता सूरज देखा है , क्षितिज नहीं कुछ भी बस भ्रम की रेखा है |
तुम शासन के प्रगति आंकड़े मत बांचो ,
भोग रहे जो बस वह असली लेखा है |
स्वरचित -- आलोक सिन्हा ---http://aloksinha1508.blogspot.com/2020/07/blog-post_20.html
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