सरस्वती वन्दना
मात तू शारदे ,
विघ्न सब टार दे ,
अश्रु अंजुरी भरे , कर
रहा वन्दना |
जीवन संघर्ष का इक पर्याय
है ,
आंसुओं , हर्ष का एक अध्याय
है |
हर नयन में हैं सौ
सौ सपने मधुर ,
नियति के सामने किन्तु
असहाय है |
तू मुझे ज्ञान दे ,
एक वरदान दे ,
हर सुख दुःख में समरस रहे
भावना |
पात्र भरता रहे , मैं लुटाता चलूँ ,
दुःख सभी के ह्रदय से लगाता
चलूँ |
पग कोई न मंजिल से पहले
रुके ,
शूल हर राह के मैं हटाता
चलूँ |
तू प्रणय भाव दे ,
नित नया चाव
दे ,
हर सिक्त पलक मेरी बने
प्रेरणा |
तन दस द्वार वाला माटी का
सदन
पंचशर कर रहे हर घड़ी आक्रमण
|
समर्पण को नित नये प्रस्ताव
हैं ,
मृग मरीचिका में भटक जाये न मन |
तू मुझे शक्ति दे ,
भव-निरासक्ति दे ,
अविचल बस तेरी मैं करूं
साधना |