गजल
रोज नये गम हैं , कुछ घटा लीजिये ,
दो घड़ी साथ हंस कर बिता लीजिये |
ईर्ष्या द्वेष से कुछ न होगा कभी ,
खुद को सबसे ऊंचा उठा लीजिये |
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जिन्दगी ये महाकाव्य हो जायेगी ,
कोई दर्द ह्रदय में बसा लीजिये |
जब न पलकें लगें , न जगा जा सके ,
कोई मेरी गजल गुनगुना लीजिये |
कई जन्मों के पाप धुल जायेंगे ,
आंसुओं में किसी के नहा लीजिये |
मारीचों का युग है बचेंगे नहीं ,
खुद को कितना राघव बना लीजिये |
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छोड़ दें साथ जब मुश्किलों में सभी ,
आप आवाज हमको लगा लीजिये |
अनुभव जो फरेबों के लिक्खे कोई ,
' आलोक ' को जुरूर बुलवा लीजिये |