मुक्तक
आंसुओं के घर शमा रात भर नहीं जलती
,
आंधियां हों तो कली
डाल पर नहीं खिलती |
धन से हर चीज पाने की
सोचने वालो ,
मन की शांति किसी दुकान पर नहीं मिलती
|
२
जिनमें कबीर सी
निर्भयता , क्या वो स्वर अब भी मिलते हैं ,
जिनमें गांधी सी जन
- चिंता , क्या वो उर अब भी मिलते है |
कितना भी हो बड़ा प्रलोभन
, शीर्ष सुखों के दुर्लभ सपने ,
जो न झुके राणा प्रताप
से , क्या वो सिर अब भी मिलते हैं |
३
धनवान बनने के लिए क्या नहीं करते हैं लोग ,
हर खास पद उनको मिले ,जाल नित बुनते हैं लोग |
पर ये जीवन ही नहीं , कई जन्म संवरते जिससे ,
नेक इन्सान बनने की , कितना सोचते हैं लोग |
आलोक सिन्हा