सोमवार, 4 मार्च 2024

मिले तो मगर अजनवी की तरह

 

                गीत 

           नयन में रूप छवि बन बसे हैं सदा ,

            वह मिले तो मगर अजनवी की तरह ।

    

दरस की कल्पना मधुर पुलकों भरी ,

मन सरस कर रही चन्दनी माधुरी ।

      

     श्वास में जो मदिर गंध से हैं बसे ,

     वह मिले तो मगर अजनवी की तरह ।

 

कुछ  सुधियाँ हैं मन जगमगाए हुए ,

प्रीत-पाँखुरी पथ में बिछाए हुए |

    

        फूल से जो अधर पर खिले हैं  सदा ,

       वह मिले तो मगर अजनवी की तरह ।

 

धडकनें श्वांस के तार पर गा रहीं ,

हर घड़ी प्यार की धुन दोहरा रहीं ।

    

       प्राण में गीत बन जो सतत बस गए ,

      वह मिले तो मगर अजनवी की तरह ।          


अलोक सिन्हा 

 

14 टिप्‍पणियां:

  1. यशोदा जी बहुत बहुत आभार धन्यवाद

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  2. शुभा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह!!!
    बहुत ही भावपूर्ण लाजवाब गीत ।

    जवाब देंहटाएं
  4. अति सुंदर भावपूर्ण गीत सर।
    शब्दों को बहुत अर्थपूर्ण ढंग से पिरोया है आपने।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत धन्यवाद आभार श्वेता जी टिप्पणी के लिए

      हटाएं
  5. yashoda Agrawal ने "मिले तो मगर अजनवी की तरह" पर टिप्पणी की
    4 मार्च 2024
    आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" मंगलवार 05 मार्च 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

    जवाब देंहटाएं

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