गीत
नयन में रूप छवि बन बसे हैं सदा ,
वह मिले तो मगर अजनवी की तरह ।
दरस की कल्पना मधुर पुलकों भरी ,
मन सरस कर रही चन्दनी माधुरी ।
श्वास में जो मदिर गंध से हैं बसे ,
वह मिले तो मगर अजनवी की तरह ।
कुछ सुधियाँ हैं मन जगमगाए हुए ,
प्रीत-पाँखुरी पथ में बिछाए हुए |
फूल
से जो अधर पर खिले हैं सदा ,
वह मिले तो मगर अजनवी की तरह ।
धडकनें श्वांस के तार पर गा रहीं ,
हर घड़ी प्यार की धुन दोहरा रहीं
।
प्राण
में गीत बन जो सतत बस गए ,
वह मिले तो मगर अजनवी की तरह ।
अलोक सिन्हा
यशोदा जी बहुत बहुत आभार धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंमीना जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
हटाएंअत्यंत सुन्दर
जवाब देंहटाएंहरीश जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
हटाएंवाह! बहुत खूब..आलोक जी ।
जवाब देंहटाएंशुभा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण लाजवाब गीत ।
सुधा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंजोशी जी बहुत बहुत धन्यवाद ह्रदय से आभार
हटाएंअति सुंदर भावपूर्ण गीत सर।
जवाब देंहटाएंशब्दों को बहुत अर्थपूर्ण ढंग से पिरोया है आपने।
सादर।
बहुत बहुत धन्यवाद आभार श्वेता जी टिप्पणी के लिए
हटाएंyashoda Agrawal ने "मिले तो मगर अजनवी की तरह" पर टिप्पणी की
जवाब देंहटाएं4 मार्च 2024
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" मंगलवार 05 मार्च 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !