गीत
आँसू से भीगी अँखियाँ भी ,
सपनों में मुस्काने लगती |
कितनी हों दर्दीली श्वासें ,
प्रीति जगे तो गाने लगतीं |
प्रीति हुई वैरागिन तो इन भोली श्वासों का क्या
होगा |
पीर न लेती जनम धरा पर ,
तो साँसों के फूल न खिलते |
यमुना जल पानी कहलाता ,
यदि राधा के अश्रु न मिलते |
झूठी हैं यदि अश्रु कथाएँ तो इतिहासों का क्या
होगा |
तिल तिल जलकर ही दीपक ने ,
मंगलमय उजियारा पाया |
जितना दुःख सह लेता है मन ,
उतनी उजली होती काया |
पुन्य
पाप से हार गये तो इन विश्वासों का क्या होगा |
शानदार रचना
जवाब देंहटाएंराजपुरोहित जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
हटाएंगीत पढ़कर कभी नीरज तो कभी बच्चन की याद आती रही, अति सुंदर भावपूर्ण सृजन !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार अनीता जी
हटाएंसुंदर भावपूर्ण सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार धन्यवाद मनोज जी
हटाएंपीर न लेती जनम धरा पर ,
जवाब देंहटाएंतो साँसों के फूल न खिलते |
यमुना जल पानी कहलाता ,
यदि राधा के अश्रु न मिलते |
वाह!!!!
क्या बात...
बहुत बहुत लाजवाब मनभावन गीत।
बहुत बहुत धन्यवाद आभार सुधा जी
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण भावाभिव्यक्ति ।अति सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंरंगोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ सर🙏
हटाएंहोली की आपको भी बहुत बहुत बधाई हार्दिक शुभकामनाएं
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार मीना जी
जवाब देंहटाएंकितनी हों दर्दीली श्वासें ,
जवाब देंहटाएंप्रीति जगे तो गाने लगतीं |
प्रीति हुई वैरागिन तो इन भोली श्वासों का क्या होगा |
हर छंद मन को गहराई तक छू गया। सादर प्रणाम।
बहुत बहुत धन्यवाद आभार
जवाब देंहटाएंyashoda Agrawal ने "मिले तो मगर अजनवी की तरह" पर टिप्पणी की
जवाब देंहटाएं4 मार्च 2024
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" मंगलवार 05 मार्च 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
बहुत बहुत धन्यवाद
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