गजल
मैं बहारों के घर कल गया ,
आँधियों को पता चल गया ।
ये आख़री रात है कह कर ,
रोज अँधेरा मुझे छल गया ।
खुशी लाएगी कल कुछ सुबह ,
उम्मीद में हर दिन ढल गया ।
खतावार हूँ मुआफ कर दो ,
सच यूं ही मुँह से निकल गया ।
काग बोला है मुंडेरी पर ,
क्या उन्हें मेरा खत मिल गया ?
आलोक बच्चा है सरल सा ,
झूठे वादों से बहल गया ।
अलोक सिन्हा
सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार
हटाएंबेहतरीन ग़ज़ल, पंक्तियों को एक सीध में लगायें और हरेक शेर के मध्य समान अंतर रखें तो और सुंदर लगेगी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार। सही कहा आपने।
हटाएंबहुत सुंदर एवं अर्थपूर्ण रचना। सादर प्रणाम।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार
जवाब देंहटाएंyashoda Agrawal ने "सच मुँह से निकल गया" पर टिप्पणी की
जवाब देंहटाएं29 मार्च 2024
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 30 मार्च 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
यशोदा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
जवाब देंहटाएंवाह क्या खूब लिखा...
जवाब देंहटाएंखुशी लाएगी कल कुछ सुबह ,
उम्मीद में हर दिन ढल गया ।
खतावार हूँ मुआफ कर दो ,
सच यूं ही मुँह से निकल गया ।...शानदार
अलकनंदा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत सुन्दर गज़ल ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार मीना जी
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार ज्योति जी
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जवाब देंहटाएंये आख़री रात है कह कर ,
रोज अँधेरा मुझे छल गया ।
वाह क्या बात...
खुशी लाएगी कल कुछ सुबह ,
उम्मीद में हर दिन ढल गया ।
बहुत ही लाजवाब गजल।
सुधा जी बहुत बहुत आभार धन्यवाद
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जवाब देंहटाएंराकेश जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
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