गुरुवार, 28 मार्च 2024

सच मुँह से निकल गया

 


           गजल

 

  मैं बहारों के घर कल गया ,

आँधियों को पता चल गया ।                                                                                                                                                    


ये आख़री रात है कह कर ,

रोज अँधेरा मुझे छल गया । 


खुशी लाएगी कल कुछ सुबह ,

उम्मीद में हर दिन ढल गया ।


 खतावार हूँ मुआफ कर दो ,

सच यूं ही मुँह से निकल गया ।

 

काग बोला है मुंडेरी पर ,           

क्या उन्हें मेरा खत मिल गया ?


आलोक बच्चा है सरल सा ,

झूठे वादों से बहल गया ।

 

अलोक सिन्हा

 

 

18 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन ग़ज़ल, पंक्तियों को एक सीध में लगायें और हरेक शेर के मध्य समान अंतर रखें तो और सुंदर लगेगी

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  2. बहुत सुंदर एवं अर्थपूर्ण रचना। सादर प्रणाम।

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  3. yashoda Agrawal ने "सच मुँह से निकल गया" पर टिप्पणी की
    29 मार्च 2024
    आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 30 मार्च 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  4. यशोदा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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  5. वाह क्या खूब ल‍िखा...
    खुशी लाएगी कल कुछ सुबह ,
    उम्मीद में हर दिन ढल गया ।

    खतावार हूँ मुआफ कर दो ,
    सच यूं ही मुँह से निकल गया ।...शानदार

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  6. अलकनंदा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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  7. ये आख़री रात है कह कर ,

    रोज अँधेरा मुझे छल गया ।

    वाह क्या बात...

    खुशी लाएगी कल कुछ सुबह ,

    उम्मीद में हर दिन ढल गया ।

    बहुत ही लाजवाब गजल।

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