शनिवार, 22 अक्टूबर 2022

मुंडेरी मुंडेरी दिए जगमगाये |

 गीत

  

   मुंडेरी मुंडेरी दिए जगमगाये  |                 

   कहीं अल्पना हैं कहीं पुष्प लड़ियाँ ,      

   नृत्य गान घर घर भव्य पन्थ  गलियाँ |   

   यही दृश्य होगा उस दिन अवध में ,  

   जब राम चौदह बरस बाद आये |     

             मुंडेरी मुंडेरी दिए जगमगाए |

   निशा आज जैसे नख-शिख सजी है ,      

   खुशियों की मन में वंशी बजी है |        

   हर ओर उत्सव उमड़ती उमंगें ,      

   अब ये खुशी काश पल भर न जाये  |    

           मुंडेरी मुंडेरी दिए जगमगाए |

    चलो वहाँ देखें क्यों है अँधेरा ,             

    क्यों सब हैं गुमसुम दुःख का बसेरा |       

    यदि कुछ तिमिर हम औरों का बाँटें ,   

    धरा ये सूनी कहीं रह न पाये |      

            मुंडेरी मुंडेरी दिए जगमगाए |

 रचना --- आलोक सिन्हा 

 

 

        

 

 

 

 

 

 

6 टिप्‍पणियां:

  1. यदि कुछ तिमिर हम औरों का बाँटें ,

    धरा ये सूनी कहीं रह न पाये |
    बहुत सुंदर।

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  2. दीपावली पर प्रेम और सद्भावना का संदेश देती सुंदर रचना

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