गीत
तुमको मेरे भजन न भाये |
सांस सांस बन गई आरती ,
स्वर बन गूंजे भजन तुम्हारे |
धडकन धडकन बनी बांसुरी ,
टेरे तुमको सांझ सकारे |
तुमको
यह वन्दन न सुहाए |
स्नेह गंध सरसी कलियों के ,
हार युगल चरणों पर वारे |
अक्षत , कुमकुम , अर्घ्य अश्रु जल ,
रो रोकर तव चरण पखारे |
तुमको यह अर्पण न सुहाए |
लगन तुम्हारी , ध्यान तुम्हारा ,
मन में रूप अनूप समाया |
तिल तिल जले प्राण की बाती ,
चन्दन धूप बनी यह काया |
तुमको यह अर्चन न सुहाए |
ह्रदय पटल पर चित्र तुम्हारा ,
नयनों
में उसकी प्रति छाया |
श्याम पुतलियों में छवि जगमग ,
मैं निरखूँ , सब जगत लुभाया |
तुमको यह दर्पण न सुहाए |
बहुत सुंदर। सादर बधाई।
जवाब देंहटाएंवीरेन्द्र जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार |
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २ अप्रैल २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
श्वेता जी रचना को सम्मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आभार ।
जवाब देंहटाएंवाह ! अंतस की घनीभूत पीड़ा में पगी अनुरागी मन की व्यथा कथा , शब्द -शब्द
जवाब देंहटाएंजिसका प्रवाह निर्झर सा गतिमान है | किसी निर्मम के लिए ये मार्मिक उद्बोधन मन को करुना में डुबो देता है | इस भाव प्रवण सृजन के लिए आपको आभार और शुभकामनाएं आदरणीय आलोक जी | ब्लॉग जगत आपके भावों के अनमोल खजाने से रूबरू हो रहा है , ये देखकर अच्छा लगता है | सादर
बहुत बहुत धन्यवाद आभार रेणु जी इस सार्थक सुन्दर टिप्पणी के लिए ।
हटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार आदरणीय
हटाएंगहरी रचना...।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार संदीप जी
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार भाई साहब ।
हटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसधु जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
जवाब देंहटाएंईश्वर को उसके नाम से किया गया हर कार्य भाता है फिर आपके भजन क्यों नहीं? सुन्दर रचा।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार जताया
हटाएंयहाँ मैं टिप्पणी कर चुकी थी पर अभी दिख नहीं रही ।
जवाब देंहटाएंये मन के भाव किसी व्यक्ति के प्रति महसूस हो रहे हैं ।क्यों कि ईश्वरीय शक्ति के प्रति आप ऐसा महसूस नहीं करते कि आपकी पूजा अर्चना उसको पसंद नहीं आ रही ।
अपने मन की पीड़ा के भावों को सुंदर शब्दों में ढाला है ।
सुंदर सृजन ।
संगीता जी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आभार
जवाब देंहटाएंआपकी रचनाओं पर कुछ प्रतिक्रिया देने में स्वयं को असमर्थ ही पाती हूँ। अनुराग का यह सात्विक स्वरूप जिसमें प्रिय को ईश्वर रूप में देखा और उलाहना भी दे दिया कि 'तुमको मेरे भजन ना भाए'
जवाब देंहटाएंमीना जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार ---- खुले मन से टिप्पणी करने के लिए |
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना, ईश्वर की प्रत्येक चीज अद्भुत एवं सुंदर ही होती सो आपकी रचना भी उसकी की तरह निर्मल पावन गहरे भाव से बंधी हुई है, हरि शरणम्, हरि ओम, सादर नमन, हार्दिक बधाई हो, शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंज्योति जी बहुत बहुत आभार धन्यवाद सुंदर टिप्पणी के लिए
जवाब देंहटाएं