गीत
लो पंछी नीड़ों से जाते |
पूरब ने बिखराई रोली |
चल दी अलमस्तों की टोली |
चलते साथ प्रभाती गाते |
लो पंछी नीड़ों से जाते |
रजनी भर के
सपनें संग हैं |
साँसों से प्रिय अपने संग हैं |
राह कटेगी गाते गाते |
लो पंछी नीड़ों से जाते |
पंखों में साहस है गति है |
जीवन का पर्याय प्रगति है |
जो चलते वे मंजिल पाते |
लो पंछी नीड़ों से जाते |
सुन्दर नवगीत।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार धन्यवाद भाई साहब
जवाब देंहटाएंराह कटेगी गाते गाते |
जवाब देंहटाएंलो पंछी नीड़ों से जाते |
पंखों में साहस है गति है |
जीवन का पर्याय प्रगति है |----गहरी पंक्तियां।
बहुत बहुत आभार धन्यवाद संदीप जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और प्रेरक कविता।सादर शुभकामनाएं आदरणीय आलोक सिन्हा जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार जिज्ञासा जी
जवाब देंहटाएंपंखों में साहस है गति है |
जवाब देंहटाएंजीवन का पर्याय प्रगति है |
जो चलते वे मंजिल पाते |
लो पंछी नीड़ों से जाते |
बहुत सुंदर प्रेरक रचना।
बहुत बहुत धन्यवाद आभार ज्योति जी
जवाब देंहटाएंसुन्दर नवगीत ...
जवाब देंहटाएंप्रेरणा के नव स्वर लिए ... भाओं की उन्मुक्त उड़ान का गीत ...
बहुत बहुत धन्यवाद आभार नासवा जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंमनोज जी बहुत बहुत आभार धन्यवाद
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