गीत
जिस देश में शिक्षक का मन घायल हो ,
उसका तुम भविष्य अँधेरे में समझो |
शिक्षा तो है आधार जिन्दगी
का ,
इससे ही हर व्यक्तित्व निखरता है |
गांधी टैगोर विवेकानंद जैसा ,
मन पावन आदर्शों
में ढलता है |
जब कौटिल्य की पीर न नन्द सुने , उस वक्त को दुःख के घेरे में समझो |
हर जाति धर्म के मध्य गहन खाई
,
निर्धनता अधिकारों से वंचित हो |
वह देश छुयेगा नील गगन कैसे ,
हर प्रतिभा
प्रतिबंधों से बाधित हो |
जो धरा स्वार्थ लिप्सा में सब डूबी ,
उसका प्रभात तुम कोहरे में समझो |
छल को तो सारे दुर्लभ सुख सम्भव ,
पर श्रम पल भर मुस्कानों को तरसे |
चेतना भटकती सूनी सड़कों पर ,
वाचालों के घर मधुवन से हर्षे |
जिस राज में ऐसी विषम नीतियाँ
हों ,
उसका सद्चरित्र तुम खतरे में समझो |
आलोक सिन्हा