गीत
जिस देश में शिक्षक का मन घायल हो ,
उसका तुम भविष्य अँधेरे में समझो |
शिक्षा तो है आधार जिन्दगी का ,
इससे ही हर व्यक्तित्व निखरता है |
गांधी टैगोर विवेकानंद जैसा ,
मन पावन आदर्शों में ढलता है |
जब कौटिल्य की पीर न नन्द सुने , उस वक्त को दुःख के घेरे में समझो |
हर जाति धर्म के मध्य गहन खाई ,
निर्धनता अधिकारों से वंचित हो |
वह देश छुयेगा नील गगन कैसे ,
हर प्रतिभा
प्रतिबंधों से बाधित हो |
जो धरा स्वार्थ लिप्सा में सब डूबी ,
उसका प्रभात तुम कोहरे में समझो |
पर श्रम पल भर मुस्कानों को तरसे |
चेतना भटकती सूनी सड़कों पर ,
वाचालों के घर मधुवन से हर्षे |
जिस राज में ऐसी विषम नीतियाँ हों ,
उसका सद्चरित्र तुम खतरे में समझो |
आलोक सिन्हा
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शुक्रवार 09 सितम्बर 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
यशोदा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
हटाएंसुंदर और सार्थक रचना शिक्षक के मन की पीड़ा छलक उठी है।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार
हटाएंजहाँ शिक्षक का सम्मान नहीं वहाँ क्या क्या त्रासदी हो सकती है ,इसका भान बखूबी किया है म सार्थक रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार संगीता जी
हटाएंराजनीति कुछ ज्यादा हर क्षेत्र में, शिक्षा का महकमा भी इससे अछूता नहीं। इससे समर्पित शिक्षकों का मनोबल गिरता है
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार कविता जी
जवाब देंहटाएंशिक्षक के सम्मान और उसकी मानवीय संवेदनाओं पर हो रहे आघात को सच्चाई से व्यक्त करती
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना
बहुत बहुत धन्यवाद आभार ज्योति जी |
हटाएंसार्थक लेखन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार अनीता जी
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत खूब आलोक जी । शिक्षक के मन की पीडा को खूब उकेरा आपने ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार शुभा जी
हटाएंशिक्षक के मन की पीड़ा को व्यक्त करती बहुत सुंदर रचना, आलोक भाई।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार धन्यवाद ज्योति जी
हटाएंसटीक भाव लिए
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएं