गजल
रोज नये गम हैं , कुछ घटा लीजिये ,
दो घड़ी साथ हंस कर बिता लीजिये |
ईर्ष्या द्वेष से कुछ न होगा कभी ,
खुद को सबसे ऊंचा उठा लीजिये |
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जिन्दगी ये महाकाव्य हो जायेगी ,
कोई दर्द ह्रदय में बसा लीजिये |
जब न पलकें लगें , न जगा जा सके ,
कोई मेरी गजल गुनगुना लीजिये |
कई जन्मों के पाप धुल जायेंगे ,
आंसुओं में किसी के नहा लीजिये |
मारीचों का युग है बचेंगे नहीं ,
खुद को कितना राघव बना लीजिये |
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छोड़ दें साथ जब मुश्किलों में सभी ,
आप आवाज हमको लगा लीजिये |
अनुभव जो फरेबों के लिक्खे कोई ,
' आलोक ' को जुरूर बुलवा लीजिये |
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(28-12-21) को मेहमान कुछ दिन का अब साल है"(चर्चा अंक4292)पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत धन्यवाद आभार कामिनी जी
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (29-12-2021) को चर्चा मंच "भीड़ नेताओं की छटनी चाहिए" (चर्चा अंक-4293) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत धन्यवाद आभार मयंक जी
हटाएंबेहतरीन गजल
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार अनिता सुधीर जी
हटाएंसच है आलोक जी ,जिंदगी खुद ही महाकाव्य बन जायेगी , दर्द दिल में अगर कोई बसा लीजिए।
जवाब देंहटाएंवेहतरीन रचनाः
बहुत बहुत आभार धन्यवाद आपका
हटाएंवाह! बहुत सुंदर भाव लिए शानदार सृजन।
हटाएंअभिनव।
कुसुम जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
जवाब देंहटाएंईर्ष्या द्वेष से कुछ न होगा कभी ,
जवाब देंहटाएंखुद को सबसे ऊंचा उठा लीजिये |
यही काम तो सबसे ज्यादा मुश्किल है ।।
बहुत खूबसूरत और प्रेरणादायक ग़ज़ल ।।
संगीता जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार टिप्पणी के लिए
हटाएंआलोक जी ,
जवाब देंहटाएंक्षमा चाहती हूँ कि अब तक आपका ब्लॉग फॉलो नहीं किया था । नासवा जी के ब्लॉग से आपके ब्लॉग तक पहुँची हूँ । आपका ब्लॉग मेरी रीडिंग लिस्ट में नहीं था । इसीलिए आपके उच्च कोटि के सृजन से वंचित रही । 🙏🙏
सादर
संगीता स्वरूप
बहुत बहुत आभार
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