शनिवार, 22 अक्तूबर 2022

मुंडेरी मुंडेरी दिए जगमगाये |

 गीत

  

   मुंडेरी मुंडेरी दिए जगमगाये  |                 

   कहीं अल्पना हैं कहीं पुष्प लड़ियाँ ,      

   नृत्य गान घर घर भव्य पन्थ  गलियाँ |   

   यही दृश्य होगा उस दिन अवध में ,  

   जब राम चौदह बरस बाद आये |     

             मुंडेरी मुंडेरी दिए जगमगाए |

   निशा आज जैसे नख-शिख सजी है ,      

   खुशियों की मन में वंशी बजी है |        

   हर ओर उत्सव उमड़ती उमंगें ,      

   अब ये खुशी काश पल भर न जाये  |    

           मुंडेरी मुंडेरी दिए जगमगाए |

    चलो वहाँ देखें क्यों है अँधेरा ,             

    क्यों सब हैं गुमसुम दुःख का बसेरा |       

    यदि कुछ तिमिर हम औरों का बाँटें ,   

    धरा ये सूनी कहीं रह न पाये |      

            मुंडेरी मुंडेरी दिए जगमगाए |

 रचना --- आलोक सिन्हा 

 

 

        

 

 

 

 

 

 

रविवार, 9 अक्तूबर 2022

गीत --- कोई तो सच सच बतलाये

 

             गीत

कोई तो सच सच बतलाये ,

अवध पुरी में पग धरने को ,

         कितना अभी और चलना है |

दोनों पांवों में छाले हैं ,

अधरों पर जकड़े ताले हैं |

दूर दूर तक कहीं जरा भी ,

नहीं दीखते उजियाले हैं |

      चारों ओर घिरी आंधी में ,

      भूख प्यास से जर्जर तन को ,

        अभी और क्या क्या सहना है |

ताल  ताल जमघट बगुलों का ,

डाल  डाल कागों का आसन |

कैसे कोई लाज बचाये ,

हर पथ पर कपियों का शासन |

     भीड़ तन्त्र के इस नव युग में ,

     प्रजातंत्र के घायल तन को ,

       कब तक नित तिल तिल दहना है |

सच भयभीत मौन व्रत साधे ,

अल्प बुद्धि स्वच्छंद हो गईं |

ह्रदय ह्रदय में शूल बो दिये ,

करुणा जाने कहाँ खो गई |

     ऋषि मुनियों की तपो भूमि पर ,

     तम यह झंझा का मौसम ,                                                                .                     कब तक अभी और रहना है |

आलोक सिन्हा

 

 

 

 

 

सच मुँह से निकल गया

              गजल     मैं बहारों के घर कल गया , आँधियों को पता चल गया ।                                                            ...