मुक्तक
आंसुओं के घर शमा रात भर नहीं जलती
,
आंधियां हों तो कली
डाल पर नहीं खिलती |
धन से हर चीज पाने की
सोचने वालो ,
मन की शांति किसी दुकान पर नहीं मिलती
|
२
जिनमें कबीर सी
निर्भयता , क्या वो स्वर अब भी मिलते हैं ,
जिनमें गांधी सी जन
- चिंता , क्या वो उर अब भी मिलते है |
कितना भी हो बड़ा प्रलोभन
, शीर्ष सुखों के दुर्लभ सपने ,
जो न झुके राणा प्रताप
से , क्या वो सिर अब भी मिलते हैं |
३
धनवान बनने के लिए क्या नहीं करते हैं लोग ,
हर खास पद उनको मिले ,जाल नित बुनते हैं लोग |
पर ये जीवन ही नहीं , कई जन्म संवरते जिससे ,
नेक इन्सान बनने की , कितना सोचते हैं लोग |
आलोक सिन्हा
बहुत बहुत धन्यवाद आभार कामिनी जी |
जवाब देंहटाएंसराहनीय सृजन आदरणीय सर।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बहुत धन्यवाद आभार अनीता जी
जवाब देंहटाएंलाजवाब मुक्तक
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार संगीता जी
हटाएंचिंतन एवं मननशील मुक्तक।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार अमृता जी
हटाएंआदरणीय आलोक जी, बहुत सुंदर सृजन! मुक्तक बहुत अच्छे है। --ब्रजेंद्रनाथ
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार मर्मज्ञ जी
हटाएंबहुत सुंदर एवं शिक्षाप्रद मुक्तक। सादर प्रणाम।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार मीना जी
हटाएंबहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंतीनों मुक्तक अपनी बात को स्पष्तः रखते हुवे ... सच के करीब ...
मन की शान्ति सच मिएँ किसी दूकान पर नहीं मिलती ... क्या बात है ...
बहुत बहुत धन्यवाद आभार नासवा जी
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार मनोज जी
जवाब देंहटाएंनेक इन्सान बनने की , कितना सोचते हैं लोग |
जवाब देंहटाएंबस धन और पद ही चाहते हैं
बहुत ही सटीक... सुन्दर संदेशप्रद...
लाजवाब मुक्तक।
बहुत बहुत धन्यवाद आभार सुधा जी
जवाब देंहटाएंसभी मुक्तक एक से बढ़ कर एक है, आलोक भाई।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार ज्योति जी
जवाब देंहटाएंसार्थक मुक्तक सुंदर गहन भाव लिए।
जवाब देंहटाएंतीनों रचनाएं प्रभावशाली, सुंदर।
कुसुम जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
जवाब देंहटाएंमन की शान्ति , कर्म पर निर्भर होती है
जवाब देंहटाएं- बीजेन्द्र जैमिनी
बहुत बहुत धन्यवाद आभार जेमिनी जी
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