सरस्वती वन्दना
मात तू शारदे ,
विघ्न सब टार दे ,
अश्रु अंजुरी भरे , कर
रहा वन्दना |
जीवन संघर्ष का इक पर्याय
है ,
आंसुओं , हर्ष का एक अध्याय
है |
हर नयन में हैं सौ
सौ सपने मधुर ,
नियति के सामने किन्तु
असहाय है |
तू मुझे ज्ञान दे ,
एक वरदान दे ,
हर सुख दुःख में समरस रहे
भावना |
पात्र भरता रहे , मैं लुटाता चलूँ ,
दुःख सभी के ह्रदय से लगाता
चलूँ |
पग कोई न मंजिल से पहले
रुके ,
शूल हर राह के मैं हटाता
चलूँ |
तू प्रणय भाव दे ,
नित नया चाव
दे ,
हर सिक्त पलक मेरी बने
प्रेरणा |
तन दस द्वार वाला माटी का
सदन
पंचशर कर रहे हर घड़ी आक्रमण
|
समर्पण को नित नये प्रस्ताव
हैं ,
मृग मरीचिका में भटक जाये न मन |
तू मुझे शक्ति दे ,
भव-निरासक्ति दे ,
अविचल बस तेरी मैं करूं
साधना |
रचना को सम्मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आभार |
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सरस्वती वंदना, आलोक भाई।
जवाब देंहटाएंज्योति जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
जवाब देंहटाएंदेवी की चरणों में सुंदर प्रार्थना
जवाब देंहटाएंअनीता जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी प्रार्थना।
जवाब देंहटाएंसादर
अनीता जी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आभार
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा सरस्वती प्रार्थना
जवाब देंहटाएंविभारती जी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आभार
जवाब देंहटाएंशब्दों में निहित भावों की व्याख्या सहित सुंदर पावन वंदना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
प्रज्ञा जी बहुत बहुत आभार धन्यवाद सुन्दर टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर माँ की वंदना ...
जवाब देंहटाएंस्वतः शीश नवाने का भाव पैदा होता अहि ... बहुत भावपूर्ण ...
नासवा जी बहुत बहुत आभार धन्यवाद सुन्दर टिप्पणी के लिए ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सरस्वती प्रार्थना
जवाब देंहटाएंमनोज जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार सुंदर टिप्पणी के लिए ।
जवाब देंहटाएंतन दस द्वार वाला माटी का सदन
जवाब देंहटाएंपंचशर कर रहे हर घड़ी आक्रमण
समर्पण को नित नये प्रस्ताव हैं ,
मृग मरीचिका में भटक जाये न मन |
तू मुझे शक्ति दे ,
भव-निरासक्ति दे ,
अविचल बस तेरी मैं करूं साधना
हमारी अपनी ही इंद्रियाँ, तृष्णाएं और भौतिक आकर्षक हमारे भक्ति मार्ग में बाधक हैं स्वयं पर विजय प्राप्त कर आत्मसात करने की शक्ति माँ सरस्वती से ही मिल सकती है...
माँ सरस्वती की स्तुति मेंउत्कृष्ट सृजन।
सुधा जी सुन्दर टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार धन्यवाद |
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