गीत
आओ आज वहां चलते हैं जहां प्यार की गंगा बहती , सब हंस कर मिलते जुलते हैं आओ आज वहां चलते हैं ||
छोटे छोटे घर झौंपड़ियाँ , छोटे छोटे स्वप्न नयन में | बच्चे कभी न सोयें भूखे , बस ये कर जाऊं जीवन में | हर दिन बस कल की चिंता में , मिट्टी के चूल्हे जलते हैं |
कलियों फूलों जैसा बचपन , भविष्य खोजता गलियारों में | भाल लिखी रेखाएं कहती , हर पथ गुम है अंधियारों में ,
मन को घुटन , पाँव को छाले , आँखों को आंसू मिलते हैं |
दिन हो या रजनी पूनम की , तम न तनिक पल भर घटता है | जग कितने नित पर्व मनाये , मरघट सा मातम रहता है |
ऋतु कोई हो पावस जैसे आँखों से आँसू ढ़लते हैं |
कहीं जैन मन्दिर , गुरु द्वारे , साईं बाबा शिरडी वाले | कहीं चर्च, शिव मन्दिर, मस्जिद , बौद्ध मठों के भवन निराले |
कहीं न कोई भेद मनों में , बस मीठे रिश्ते पलते हैं |
कोई धर्म जाति हो कोई , पर मन गंगा जैसा निर्मल | कितने भी अभाव सन्मुख हों , डिगता नहीं सत्य का आँचल |
श्रम- मन्दिर की पूजा ,जिसमें - आशा के दीपक बलते हैं |
अलोक सिन्हा
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-3-22) को "घर में फूल की क्यारी रखना.."(चर्चा-अंक 4382)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत धन्यवाद आभार कामिनी जी
जवाब देंहटाएंआदरणीय आलोक जी,बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति है और राम राज्य सा स्वपन संजोये कवि की कल्पना का अद्भूत संसार है।काश इतना आसान होता सरलता और सादगी भरे इन गलियारों तक पहुँचना।हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं 🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार रेणु जी
हटाएंछोटे छोटे घर झौंपड़ियाँ ,
जवाब देंहटाएंछोटे छोटे स्वप्न सजीले | बस कैसे भी हो मैं कर दूं , कर अपनी बिटिया के पीले |
हर दिन बस कल की चिंता में ,
मिट्टी के चूल्हे जलते हैं |/////
👌👌👌🙏🙏
बहुत बहुत धन्यवाद आभार रेणु जी
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत ही सुंदर सृजन हृदयस्पर्शी।
जवाब देंहटाएंहर दिन बस कल की चिंता में ,
मिट्टी के चूल्हे जलते हैं |
फूलों कलियों जैसा बचपन , भविष्य खोजता गलियारों में... वाह!
बहुत बहुत धन्यवाद आभार अनीता जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार मीना जी
जवाब देंहटाएंकोमल विश्व कल्याण के भाव लिए बहुत ही संवेदनशील सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंहृदय को गहराई तक छूता सृजन।
बहुत बहुत धन्यवाद आभार कुसुम जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार मनोज जी
हटाएंविश्व कल्याण की भावना से ओतप्रोत बहुत ही सुंदर रचना, आलोक भाई।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार ज्योति जी
हटाएंछोटे घर और झोपड़ियों में आज भी स्नेह से रिश्ते पलते देखे जा सकते हैं...महान समुद्र ही खारा है नन्ही नदियों का जल तो अभी भी मीठा है...
जवाब देंहटाएंगरीबी और अभावों में स्नेह जिंदा है...
लाजवाब गीत।
वाह!!!!
सुधा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है ...
जवाब देंहटाएंजल मीठा रहता है अगर असिमित होने की इच्छा न रोंदे किसी को ...
बहुत बहुत धन्यवाद आभार नासवा जी
हटाएंकितने भी अभाव सन्मुख हों ,
जवाब देंहटाएंडिगता नहीं सत्य का आँचल |..… सत्य का साक्षात्कार करती बहुत सुंदर कविता।
बहुत बहुत आभार धन्यवाद विश्व मोहन जी ।
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत ही नेक विचार हैं। शुभकामनाएँ आलोक जी। सादर।
जवाब देंहटाएंबन्धु बहुत बहुत धन्यवाद आभार आपका
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