रविवार, 9 अक्तूबर 2022

गीत --- कोई तो सच सच बतलाये

 

             गीत

कोई तो सच सच बतलाये ,

अवध पुरी में पग धरने को ,

         कितना अभी और चलना है |

दोनों पांवों में छाले हैं ,

अधरों पर जकड़े ताले हैं |

दूर दूर तक कहीं जरा भी ,

नहीं दीखते उजियाले हैं |

      चारों ओर घिरी आंधी में ,

      भूख प्यास से जर्जर तन को ,

        अभी और क्या क्या सहना है |

ताल  ताल जमघट बगुलों का ,

डाल  डाल कागों का आसन |

कैसे कोई लाज बचाये ,

हर पथ पर कपियों का शासन |

     भीड़ तन्त्र के इस नव युग में ,

     प्रजातंत्र के घायल तन को ,

       कब तक नित तिल तिल दहना है |

सच भयभीत मौन व्रत साधे ,

अल्प बुद्धि स्वच्छंद हो गईं |

ह्रदय ह्रदय में शूल बो दिये ,

करुणा जाने कहाँ खो गई |

     ऋषि मुनियों की तपो भूमि पर ,

     तम यह झंझा का मौसम ,                                                                .                     कब तक अभी और रहना है |

आलोक सिन्हा

 

 

 

 

 

10 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(१०-१० -२०२२ ) को 'निर्माण हो रहा है मुश्किल '(चर्चा अंक-४५७७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    उत्तर
    1. अनीता जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार रचना को चर्चा में सम्मिलित करने के लिए।

      हटाएं
  2. सरिता जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. ओंकार जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. बादल मनमानी करते हैं ,

    तड़ित पूर्ण स्वच्छंद हो गईं | सत्य सृजन

    जवाब देंहटाएं

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