गीत
नयन में रूप छवि बन बसे हैं सदा ,
वह मिले तो मगर अजनवी की तरह ।
दरस की कल्पना मधुर पुलकों भरी ,
मन सरस कर रही चन्दनी माधुरी ।
श्वास में जो मदिर गंध से हैं बसे ,
वह मिले तो मगर अजनवी की तरह ।
कुछ सुधियाँ हैं मन जगमगाए हुए ,
प्रीत-पाँखुरी पथ में बिछाए हुए |
फूल
से जो अधर पर खिले हैं सदा ,
वह मिले तो मगर अजनवी की तरह ।
धडकनें श्वांस के तार पर गा रहीं ,
हर घड़ी प्यार की धुन दोहरा रहीं
।
प्राण
में गीत बन जो सतत बस गए ,
वह मिले तो मगर अजनवी की तरह ।
अलोक सिन्हा