गीत
मुंडेरी मुंडेरी दिए जगमगाये |
कहीं अल्पना हैं , कहीं पुष्प लड़ियाँ ,
नृत्य गान घर घर , भव्य पन्थ गलियाँ |
यही दृश्य
होगा उस दिन अवध में ,
जब राम चौदह बरस बाद आये |
मुंडेरी मुंडेरी दिए जगमगाए |
निशा आज
जैसे नख-शिख सजी है ,
खुशियों की मन में वंशी बजी है |
हर ओर उत्सव
, उमड़ती उमंगें
,
अब ये खुशी काश पल भर न जाये |
मुंडेरी मुंडेरी दिए जगमगाए |
चलो वहाँ
देखें क्यों है अँधेरा ,
क्यों सब हैं गुमसुम , दुःख का बसेरा |
यदि कुछ
तिमिर हम औरों का बाँटें ,
धरा ये
सूनी कहीं रह न पाये |
मुंडेरी मुंडेरी दिए जगमगाए |
वाह, बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंशिवम् जी बहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज सोमवार (१६-११-२०२०) को 'शुभ हो दीप पर्व उमंगों के सपने बने रहें भ्रम में ही सही'(चर्चा अंक- ३८८७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
अनीता जी बहुत बहुत आभार इस विशेष सम्मान के लिए |
हटाएंसुन्दर कामना-आमीन .
जवाब देंहटाएंप्रतिभा जी बहुत बहुत धन्यवाद |
हटाएंसुंदर रचना..
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं 🚩
शरद सिंह जी ! बहुत बहुत आभार | दीपावली की मंगल कामनाएं आपको भी |
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 16
जवाब देंहटाएंनवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
यशोदा जी बहुत बहुत आभार रचना को सम्मान देने के लिए |
हटाएंवाह सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंभाई साहब बहुत बहुत आभार |
हटाएंदीपावली पर्व का जीवंत दर्शन करवाती मनमोहक रचना.अति सुन्दर.
जवाब देंहटाएंमीना जी ! बहुत बहुत ह्रदय से आभार
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंमनोज जी ! बहुत बहुत धन्यवाद |
हटाएंचलो वहाँ देखें क्यों है अँधेरा ,
जवाब देंहटाएंक्यों सब हैं गुमसुम , दुःख का बसेरा |
यदि कुछ तिमिर हम औरों का बाँटें ,
धरा ये सूनी कहीं रह न पाये |
मुंडेरी मुंडेरी दिए जगमगाए
उत्तम भावों से सजी लाजवाब कृति
वाह!!!!
सुधा जी बहुत बहुत धन्यवाद ।
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंक्यों सब हैं गुमसुम , दुःख का बसेरा |
जवाब देंहटाएंयदि कुछ तिमिर हम औरों का बाँटें ,
धरा ये सूनी कहीं रह न पाये |
सार्थक रचना। सादर।
सधु जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
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