रविवार, 15 नवंबर 2020

मुडेरी मुडेरी दिये जगमगाए

 

गीत

  

   मुंडेरी मुंडेरी दिए जगमगाये  |                 

   कहीं अल्पना हैं , कहीं पुष्प लड़ियाँ ,      

   नृत्य गान घर घर , भव्य पन्थ  गलियाँ |   

   यही दृश्य होगा उस दिन अवध में ,  

   जब राम चौदह बरस बाद आये |     

             मुंडेरी मुंडेरी दिए जगमगाए |

   निशा आज जैसे नख-शिख सजी है ,      

   खुशियों की मन में वंशी बजी है |        

   हर ओर उत्सव , उमड़ती उमंगें ,      

   अब ये खुशी काश पल भर न जाये  |    

           मुंडेरी मुंडेरी दिए जगमगाए |

    चलो वहाँ देखें क्यों है अँधेरा ,             

    क्यों सब हैं गुमसुम , दुःख का बसेरा |       

    यदि कुछ तिमिर हम औरों का बाँटें ,   

    धरा ये सूनी कहीं रह न पाये |      

            मुंडेरी मुंडेरी दिए जगमगाए |

 रचना --- आलोक सिन्हा 

 

 

        

 

 

 

 

 

 

 

 

22 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज सोमवार (१६-११-२०२०) को 'शुभ हो दीप पर्व उमंगों के सपने बने रहें भ्रम में ही सही'(चर्चा अंक- ३८८७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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    उत्तर
    1. अनीता जी बहुत बहुत आभार इस विशेष सम्मान के लिए |

      हटाएं
  2. सुंदर रचना..
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं 🚩

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  3. शरद सिंह जी ! बहुत बहुत आभार | दीपावली की मंगल कामनाएं आपको भी |

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  4. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 16
    नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    उत्तर
    1. यशोदा जी बहुत बहुत आभार रचना को सम्मान देने के लिए |

      हटाएं
  5. दीपावली पर्व का जीवंत दर्शन करवाती मनमोहक रचना.अति सुन्दर.

    जवाब देंहटाएं
  6. चलो वहाँ देखें क्यों है अँधेरा ,

    क्यों सब हैं गुमसुम , दुःख का बसेरा |

    यदि कुछ तिमिर हम औरों का बाँटें ,

    धरा ये सूनी कहीं रह न पाये |

    मुंडेरी मुंडेरी दिए जगमगाए
    उत्तम भावों से सजी लाजवाब कृति
    वाह!!!!

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  7. क्यों सब हैं गुमसुम , दुःख का बसेरा |

    यदि कुछ तिमिर हम औरों का बाँटें ,

    धरा ये सूनी कहीं रह न पाये |
    सार्थक रचना। सादर।

    जवाब देंहटाएं

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