गीत
, तिमिर दासता हट जाने पर सोचा था धरती महकेगी ,
लेकिन अब तो पहले से भी ज्यादा गहरा अँधियारा
है |
फूल फूल का तन झुलसा है ,
कली कली बेहोश पड़ी है |
हर गुलाब केसर की क्यारी ,
तिमिर ज्योति के मध्य खड़ी है |
सुख का पवन नहीं बहता अब ,
आंसू से भीगा हर आंगन |
मानसरोवर के पुलिनों पर ,
कपटी बगुलों का है आसन |
किसको दें अब दोष बताओ , किसको अपराधी ठहराएँ ,
जब दिग्भ्रमित पथिक के नयनों से ही ओझल ध्रुव
तारा है |
एक दिवस फूलों की टोली ,
माली से बोली झुंझलाकर |
शूल मनाते नित बसंत हैं ,
अपने भाग लिखा क्यों पतझर |
माली बोला शूल धरा की ,
शोभा हैं , रक्षा करते हैं |
किन्तु तुम्हारे जैसे अगणित ,
पुष्प नित्य जीते मरते हैं |
अब कितना ही शोर मचाओ , पथ से भले दूर हो जाओ ,
पर हम राह नहीं बदलेंगे ,प्रजातंत्र हमको प्यारा है |
विस्मित है सारी वसुन्धरा ,
कैसा ये आया परिवर्तन |
डगर डगर डाली डाली पर ,
पद लोलुपता करती नर्तन |
धर्म हीन दादुर कोयल को ,
रामायण पढ़ना सिखलाते |
अंधकार में जीने वाले ,
जुगनू रवि
को राह दिखाते |
दीप- दान इतिहास समय के हाथों में देनें
आया है ,
कब तक कोई मौन रहेगा , जब घायल उपवन सारा है |
बहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंशिवम जी बहुत बहुत आभार |
हटाएंमानसरोवर के पुलिनों पर ,
जवाब देंहटाएंकपटी बगुलों का है आसन |
किसको दें अब दोष बताओ , किसको अपराधी ठहराएँ ,
जब दिग्भ्रमित पथिक के नयनों से ही ओझल ध्रुव तारा है |
बहुत ही सुंदर प्रेरक रचना। साझा करने हेतु सादर आभार। प्रणाम आदरणीय आलोक सिन्हा सर।
मीना जी बहुत बहुत आभार सार्थक टिप्पणी के लिए |
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (१०-११-२०२०) को "आज नया एक गीत लिखूं"(चर्चा अंक- 3881) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
कामिनी जी ! रचना को विशेष सम्मान देने के लिए बहुत बहुत आभार |चर्चा में सम्मिलित होने का हर सम्भव प्रयास करूंगा |
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंभाई साहब ! बहुत बहुत धन्यवाद |
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंज्योति जी , बहुत बहुत आभार |
हटाएंबहुत ही सुंदर गीत रचा है सर आपने।
जवाब देंहटाएंकल-कल बहते बंद सराहनीय ।
दोष किसी का नहीं मानसिकता का है स्वयं को नहीं दुसरो को बदलना चाहते हैं ।
मन को छूती बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
अनीता जी !एक बहुत अच्छी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार |
हटाएंबेहद प्रभावशाली सृजन
जवाब देंहटाएंसतीश जी बहुत बहुत धन्यवाद |
हटाएंमाली बोला शूल धरा की ,
जवाब देंहटाएंशोभा हैं , रक्षा करते हैं |
किन्तु तुम्हारे जैसे अगणित ,
पुष्प नित्य जीते मरते हैं |
वाह!!!!!
अंधकार में जीने वाले ,
जुगनू रवि को राह दिखाते |
बहुत ही लाजवाब प्रभावशाली लेखन।
सुधा जी बहुत बहुत आभार |
हटाएं