विरह -
गीत
घर घर खुशियाँ देने वाले बादल , क्या मेरी भी पीड़ा दुल्रराओगे |
जाने कब से यह घर आंगन सूना ,
दीवाली भी कुछ तिमिर न हर पाई |
फागुन तन बिना भिगोये चला गया ,
पावस मन में उल्लास न भर पाई | दिशि दिशि विचरण करने वाले बादल ,
पिउ को
मेरी पाती पहुंचाओगे |
सपने अखियों के द्वार नहीं आते ,
मुस्काने अधरों से कतराती हैं |
पूनम को निशि जब चंदा संग आती ,
कुछ यादें मन बेसुद कर जाती हैं |
तरु पल्लव सरसाने वाले बादल ,
क्या मेरा उर-उपवन हर्षाओगे |
जीवन का कोई अर्थ न रह जाता ,
हर ओर घिरा जब सतत अँधेरा हो |
कब तक कोई कितनी आशा बांधे ,
जब नित्य अनिश्चित सुभग सवेरा हो |
जल थल नभ को
जीवन देने वाले ,
क्या मेरा गत जीवन लौटोओगे |
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