गीत
कब तक कोई आस लगाये ,
अपना आकुल मन बहलाए |
घर सूना है , आंगन सूना ,
जीवन का वृन्दावन सूना |
सुधियों
की राधिका हठीली ,
और कर रही दुःख को दूना |
बिलख रही प्राणों की वंशी ,
बिना तुम्हारे कौन बजाये |
सांसौं की गोपियाँ शिथिल मन ,
भटक रही हैं कानन कानन |
शीश धरे आशा की गगरी ,
नयनों में गंगाजल पावन |
उमर थक गई , पर करील की –
कुंजों में घनश्याम न आये |
देख देख कर बाट चरण की ,
मुरझाईं कलियाँ सब तन की |
व्याकुल नयनों की कालिन्दी ,
बिन छवि देखे श्याम बरन की |
टेर रहा गोकुल का कण कण ,
अपना बोझिल शीश उठाये |
आलोक सिन्हा
आदरणीया यशोदा जी बहुत बहुत धन्यवाद , आभार |
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार धन्यवाद
हटाएंकब तक कोई आस लगाये ,
जवाब देंहटाएंअपना आकुल मन बहलाए |
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब सृजन
बहुत बहुत आभार धन्यवाद
हटाएंआदरणीय आलोक सिन्हा सर, मंत्रमुग्ध कर देने वाली रचना, बिल्कुल मेरे पसंद की। अब ऐसे छंद और शब्द शिल्प बहुत कम लिखे जा रहे हैं। सादर प्रणाम सर।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद |
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