गीत
जब से भाभी मिलीं दिन सुघर हो
गये ,
सूने सूने सभी पल मधुर हो गये
|
पायलें
फागुनी गीत गानें लगीं ,
चूड़ियाँ
हर घड़ी गुनगुनानें लगीं |
जब से पावन मृदुल पाँव उनके पड़े
,
सब घर देहरी आंगन मुखर हो गये |
कब सवेरा
हुआ , कब दुपहरी ढली ,
कुछ नहीं ज्ञात कब दीप-बाती जली |
जब से बातें शुरू मन की उनसे हुईं
,
सब दिवस जैसे छोटे पहर हो गये |
चाँदनी
से अधिक गात कोमल , विमल ,
नयन जैसे
नेह के खिले हों कमल |
नख - शिख रूप कैसे व्यक्त उनका
करूं ,
शब्द बौने औ’ अक्षम अधर हो गये |
स्वरचित मौलिक - आलोक सिन्हा
जब से भाभी मिली!!!
जवाब देंहटाएंभाभी जैसे रिश्ते पर समधुर भावों से लिखा यह गीत बहुत ही मनभावन है
कब सवेरा हुआ , कब दुपहरी ढली ,
कुछ नहीं ज्ञात कब दीप-बाती जली |
सच में जब नई-नई पहली भाभी घर आती है तो कितनी चहल -पहल हो जाती है घर में...
बहुत ही लाजवाब गीत।
सुधा जी इतनी जल्दी और एक बहुत सुखद टिप्पणी के लिए ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद आभार |
जवाब देंहटाएंहर रिश्ते का अपना आनंद और गरिमा रहती है ...
जवाब देंहटाएंआपने बहुत ही सुन्दर गीत से भाभी को मान दिया है ... खुश रहे ...
नासवा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार मन मोहक टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंआलोक भाई, भाभी के लिए बहुत ही कम गीत पढ़ने को मिलते है। भाभी पर इतनी सुंदर रचना पढ़ कर खुशी हुई। बहुत बधाई आपके
जवाब देंहटाएंज्योति जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार सुन्दर सटीक टिप्पणी के लिए ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन
जवाब देंहटाएंमनोज जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
हटाएंबहुत बढ़िया गीत आलोक जी। भाभी को मान देने वाला ये गीत बहुत पसंद आया।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार वीरेंद्र जी सुन्दर टिप्पणी के लिए
जवाब देंहटाएंशिवम कुमार पांडेय - १२.८.२१
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
शिवम जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार कविता जी
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