शनिवार, 9 जनवरी 2021

तब मैं गीत लिखा करता हूँ |

                                              गीत 

             तब मैं गीत लिखा करता हूँ |

                                              जब मेरे अन्तर की ज्वाला ,

                       सीमाओं से बढ़ जाती है |

                       आंसू की अविरल बरखा भी ,

                       उसे न जब कम कर पाती है |

                            तब मैं लेखनी की वंशी पर

                            मेघ मल्हार छेड़ा करता हूँ |

                       जब भी कोई फाँस ह्रदय में

                       गहरी चुभन छोड़ जाती है |

                       मन के सरल सुकोमल तन से ,

                       सहन नहीं कुछ हो पाती है |

                           तब मैं शब्दों के मरहम से ,

                           मन के घाव भरा करता हूँ |

                       जब सुधियों की भीड़ द्वार पर ,

                       पागल हो दस्तक देती है |

                       कोमल मधुरिम सपनों वाली ,

                       नींद नयन से हर लेती है |

                           तब मैं भावुकता के सुरभित -

                           उपवन में विचरा करता हूँ |

 

28 टिप्‍पणियां:

  1. भावपूर्ण अभिव्यक्ति.. अति सुन्दर सृजन सर !

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  2. पंत ने सही कहा था -
    '....आह से उपजा होगा गान,
    उमड़ कर आँखों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान।'

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  3. सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए आपको बधाई और शुभकामनाएं। सादर।

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  4. सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए आपको बधाई और शुभकामनाएं। सादर।

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  5. आंसू की अविरल बरखा भी,
    उसे न जब कम कर पाती है |

    तब मैं लेखनी की वंशी पर

    मेघ मल्हार छेड़ा करता हूँ|
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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  6. ज्योति जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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  7. बहुत बहुत धन्यवाद आभार ज्योति खरे जी

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  8. वाह!
    भावपूर्ण,सुन्दर रचना।
    बधाई।

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  9. सधु जी बहुत बहुत आभार धन्यवाद

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  10. मनोज जी बहुत बहुत आभार , धन्यवाद |

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  11. मन के दर्द ... उमड़ते भाव ...
    कई बार खुद ही लिखवा ले जाते हैं गीत ...
    भावपूर्ण रचना है ...

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  12. नासवा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार |

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  13. सरिता जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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  14. सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति माननीय।
    सादर नमन।

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  15. तब मैं गीत लिखा करता हूं..
    हद से ज्यादा दुनियादारी बढ़ जाती है जब
    संबंध दुनिया से तोड़कर खुद को सुना करता हूं..

    बहुत सुंदर भाव..
    सादर प्रणाम

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  16. विलम्ब से आगमन हेतु क्षमाप्रार्थी हूँ आलोक जी । मैं स्वयं कवि नहीं किंतु इस गीत के प्रत्येक शब्द से एक जुड़ाव अनुभव कर रहा हूँ ।

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  17. जितेन्द्र जी बहुत बहुत आभार धन्यवाद

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  18. रोमांचित करती भावपूर्ण रचना

    बहुत सुंदर

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  19. अरविद जी बहुत बहुत आभार धन्यवाद

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