रविवार, 4 अगस्त 2024

गीत -- मैं तुम्हारे गाँव आ तो जाता मगर

 गीत

मैं तुम्हारे गाँव आ तो जाता  मगर -

हर तरफ ही काली घटा घिर रही है |

    शोर है अब शीघ्र अदभुत भोर होगी ,

    तम ज़रा सा भी न धरती पर बचेगा |

    हर तरफ सुख की विमल गंगा बहेगी ,

    पर्व जैसा द्रश्य पग पग पर  दिखेगा |

मैं हर कथन को मान लेता सच मगर -

न तो भ्रमित  है चेतना न डर रही है | 

    सच जिसे सब देव-गुण कहते थे कभी -    

    झूठ के प्रश्रय में बेबस जी रहा है |

    आदमी सब भूल कर आदर्श अपने ,

    ईर्ष्या औ द्वेष का विष पी रहा है |

 मैं समय के अनुरूप ढल तो जाता मगर ,

( मैं समय के संग बदल तो जाता मगर ,)

पूर्वजों की सीख अड़चन कर रही है |

    कितने जनम बाद मानव तन मिला है ,

    क्या इसे मैं यूँ ही तार तार कर दूँ |

    आंसुओं से हर घड़ी जिसको संवारा , 

    ये तन का दुशाला दागदार कर  दूँ |  

मैं स्वार्थी जीवन बिता तो लेता मगर -

हर सांस में इंसानियत भर रही है |

आलोक सिन्हा

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