रविवार, 8 नवंबर 2020

तिमिर दासता हट जाने पर

                                           गीत 

,         तिमिर दासता हट जाने पर सोचा था धरती महकेगी  ,

      लेकिन अब तो पहले से भी ज्यादा गहरा अँधियारा है | 

             फूल फूल का तन झुलसा है ,

             कली कली बेहोश पड़ी है |

             हर गुलाब केसर की क्यारी ,

             तिमिर ज्योति के मध्य खड़ी है |

                सुख का पवन नहीं बहता अब ,

                आंसू से भीगा हर आंगन |                                                                              

                मानसरोवर के पुलिनों पर ,

                कपटी बगुलों का है आसन |

    किसको दें अब दोष बताओ , किसको अपराधी ठहराएँ ,

    जब दिग्भ्रमित पथिक के नयनों से ही ओझल ध्रुव तारा है |

              एक दिवस फूलों की टोली ,

              माली से बोली झुंझलाकर |

              शूल मनाते नित बसंत हैं ,

              अपने भाग लिखा क्यों पतझर |

                  माली बोला शूल धरा की ,

                  शोभा हैं , रक्षा करते हैं |

                  किन्तु तुम्हारे जैसे अगणित ,

                  पुष्प नित्य जीते मरते हैं |

    अब कितना ही शोर मचाओ , पथ से भले दूर हो जाओ , 

     पर हम राह नहीं बदलेंगे ,प्रजातंत्र हमको प्यारा है |

               विस्मित है सारी वसुन्धरा ,

               कैसा ये आया परिवर्तन |

               डगर डगर डाली डाली पर ,

               पद लोलुपता करती नर्तन |

                    धर्म हीन दादुर कोयल को ,

                                       रामायण पढ़ना सिखलाते |

                    अंधकार में जीने वाले ,

                   जुगनू रवि को राह दिखाते |

              दीप- दान इतिहास समय के हाथों में देनें आया है ,

           कब तक कोई मौन रहेगा , जब घायल उपवन सारा है |

                   आलोक सिन्हा 

 

16 टिप्‍पणियां:

  1. मानसरोवर के पुलिनों पर ,

    कपटी बगुलों का है आसन |

    किसको दें अब दोष बताओ , किसको अपराधी ठहराएँ ,

    जब दिग्भ्रमित पथिक के नयनों से ही ओझल ध्रुव तारा है |
    बहुत ही सुंदर प्रेरक रचना। साझा करने हेतु सादर आभार। प्रणाम आदरणीय आलोक सिन्हा सर।

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    1. मीना जी बहुत बहुत आभार सार्थक टिप्पणी के लिए |

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  2. सादर नमस्कार ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (१०-११-२०२०) को "आज नया एक गीत लिखूं"(चर्चा अंक- 3881) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  3. कामिनी जी ! रचना को विशेष सम्मान देने के लिए बहुत बहुत आभार |चर्चा में सम्मिलित होने का हर सम्भव प्रयास करूंगा |

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  4. बहुत ही सुंदर गीत रचा है सर आपने।
    कल-कल बहते बंद सराहनीय ।
    दोष किसी का नहीं मानसिकता का है स्वयं को नहीं दुसरो को बदलना चाहते हैं ।
    मन को छूती बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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    उत्तर
    1. अनीता जी !एक बहुत अच्छी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार |

      हटाएं
  5. माली बोला शूल धरा की ,
    शोभा हैं , रक्षा करते हैं |
    किन्तु तुम्हारे जैसे अगणित ,
    पुष्प नित्य जीते मरते हैं |
    वाह!!!!!
    अंधकार में जीने वाले ,
    जुगनू रवि को राह दिखाते |
    बहुत ही लाजवाब प्रभावशाली लेखन।

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